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जैविक और जीरो बजट प्राकृतिक खेती

जैविक खेती और जीरो बजट प्राकृतिक खेती (ZBNF) जैसे विकल्प न केवल टिकाऊ कृषि का रास्ता दिखाते हैं, बल्कि किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने में भी मदद करते हैं।

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यह लेख इन दोनों पद्धतियों के गहन विश्लेषण, उनके फायदे-नुकसान, और तुलना के साथ एक संपूर्ण मार्गदर्शक है। भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान अहम रहा है। लेकिन रासायनिक खादों और कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल ने मिट्टी की उर्वरता को कम कर दिया है, पर्यावरण को नुकसान पहुँचाया है, और किसानों को कर्ज के जाल में धकेल दिया है।


जैविक खेती क्या है?

परिभाषा:
जैविक खेती प्रकृति के नियमों पर आधारित एक कृषि पद्धति है, जिसमें रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इसके बजाय, जैविक खाद, कंपोस्ट, और प्राकृतिक तरीकों से फसलों को उगाया जाता है।

जैविक खेती

मुख्य सिद्धांत:

  1. मिट्टी की सेहत को प्राथमिकता।
  2. जैव विविधता का संरक्षण।
  3. रासायनिक मुक्त उत्पादन।

जैविक खेती के तरीके:

  • कंपोस्ट खाद: गोबर, पत्तियों, और कचरे से तैयार खाद।
  • हरी खाद: मूँग, उड़द जैसी दलहनी फसलों को जोतकर मिट्टी में मिलाना।
  • जैविक कीटनाशक: नीम का तेल, लहसुन-मिर्च का घोल।
  • फसल चक्र: एक ही खेत में अलग-अलग मौसम में विविध फसलें उगाना।

जैविक खेती के फायदे (Merits):

  1. स्वास्थ्य लाभ: रासायनिक अवशेषों से मुक्त, पौष्टिक उत्पाद।
  2. पर्यावरण सुरक्षा: जल और मिट्टी का प्रदूषण कम।
  3. मिट्टी की उर्वरता: जैविक तत्वों से मिट्टी लंबे समय तक उपजाऊ बनी रहती है।
  4. बाजार में अच्छी कीमत: जैविक उत्पादों की मांग बढ़ रही है।

जैविक खेती की चुनौतियाँ (Demerits):

  1. उच्च लागत: जैविक प्रमाणीकरण और खाद तैयार करने में खर्च।
  2. शुरुआती उपज कम: रासायनिक खेती की तुलना में पहले 2-3 साल उत्पादन कम।
  3. ज्ञान की कमी: पारंपरिक तरीकों को भूल चुके किसानों के लिए नई तकनीक सीखना मुश्किल।

जीरो बजट प्राकृतिक खेती (ZBNF) क्या है?

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इस पद्धति के जनक सुभाष पालेकर हैं। ZBNF का मतलब है “बिना कर्ज लिए, बिना बाहरी संसाधनों के प्रकृति के नियमों पर आधारित खेती”। इसमें किसान स्थानीय संसाधनों (गोमूत्र, गोबर, पौधों के अर्क) का इस्तेमाल करते हैं।

मुख्य सिद्धांत:

  1. बीजामृत: बीजों को उपचारित करने के लिए गोमूत्र और मिट्टी का मिश्रण।
  2. जीवामृत: खाद के रूप में गोबर, गोमूत्र, और दालों का आटा।
  3. मल्चिंग: मिट्टी की नमी बचाने के लिए सूखी पत्तियों या भूसे का आवरण।
  4. वापसा: फसलों के बीच उचित दूरी से हवा और रोशनी का प्रबंधन।जीरो बजट प्राकृतिक खेती (ZBNF)

ZBNF के फायदे (Merits):

  1. लागत शून्य: बाहरी खाद या कीटनाशकों पर खर्च नहीं।
  2. जलवायु अनुकूल: सूखे और असमय बारिश में भी फसल सुरक्षित।
  3. मिट्टी का पुनर्जीवन: जैविक गतिविधियाँ बढ़ने से मिट्टी उपजाऊ होती है।
  4. कर्ज मुक्ति: किसानों को महंगे कर्ज से छुटकारा।

ZBNF की चुनौतियाँ (Demerits):

  1. श्रम अधिक: जीवामृत तैयार करने और मल्चिंग में मेहनत ज्यादा।
  2. जागरूकता की कमी: ग्रामीण इलाकों में अभी भी ZBNF के तरीके अज्ञात।
  3. बाजार तक पहुँच: उत्पादों को प्रमाणित करने और बेचने में दिक्कत।

जैविक vs जीरो बजट: तुलना

पैरामीटर जैविक खेती जीरो बजट खेती
लागत प्रमाणीकरण और जैविक खाद में खर्च स्थानीय संसाधनों पर निर्भर (शून्य लागत)
तकनीक कंपोस्ट, हरी खाद जीवामृत, बीजामृत, मल्चिंग
उपज शुरुआत में कम, फिर स्थिर मौसम पर निर्भर, लेकिन टिकाऊ
उपयुक्तता छोटे और बड़े किसान दोनों छोटे किसानों के लिए आदर्श

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. क्या जैविक और ZBNF एक ही हैं?
नहीं। जैविक खेती में बाहरी जैविक खाद खरीदनी पड़ सकती है, जबकि ZBNF पूरी तरह स्थानीय संसाधनों पर निर्भर है।

2. क्या ZBNF में उपज कम होती है?
शुरुआत में हाँ, लेकिन 3-4 साल में मिट्टी सुधरने पर उपज बढ़ जाती है।

3. सरकार किसानों को क्या सहायता देती है?
कई राज्यों (आंध्र प्रदेश, हिमाचल) में ZBNF प्रशिक्षण और अनुदान दिए जाते हैं।

4. जैविक उत्पादों की मार्केटिंग कैसे करें?
FPOs (किसान उत्पादक संगठन) और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स (जैसे ऑर्गेनिक इंडिया) की मदद लें।

5. क्या इन पद्धतियों से मिट्टी की सेहत सुधर सकती है?
हाँ, दोनों ही पद्धतियाँ मिट्टी में जैविक कार्बन बढ़ाती हैं।


निष्कर्ष

जैविक और जीरो बजट प्राकृतिक खेती न केवल पर्यावरण बचाने का रास्ता हैं, बल्कि किसानों को आत्मनिर्भर बनाने का जरिया भी हैं। हालाँकि इन्हें अपनाने में चुनौतियाँ हैं, लेकिन दीर्घकालिक फायदे इन्हें भविष्य की कृषि का आधार बनाते हैं। सरकार, किसान और उपभोक्ताओं की सहभागिता से ही यह संभव है। आइए, प्रकृति के साथ सहयोग करके एक स्वस्थ और समृद्ध भविष्य की नींव रखें!

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