जीन-संशोधित फसल
21वीं सदी में कृषि के क्षेत्र में जीन-संशोधित Genetically Modified या GM फसलों का नाम सबसे चर्चित और विवादित विषयों में शामिल है। ये फसलें वैज्ञानिकों द्वारा प्रयोगशाला में तैयार की जाती हैं, जहाँ उनके आनुवंशिक कोड (DNA) में बदलाव करके उन्हें कीटों, सूखे या रासायनिक खादों के प्रति अधिक सहनशील बनाया जाता है।
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जहाँ एक ओर GM फसलों को “कृषि क्रांति का नया हथियार” बताया जाता है, वहीं दूसरी ओर इनके स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को लेकर चिंताएँ भी व्यक्त की जाती हैं। यह लेख GM फसलों के विज्ञान, उनके फायदे, विवाद और भारत में इनकी स्थिति पर एक गहन नज़र डालता है।
जीन-संशोधित फसल क्या हैं?
GM फसलों को समझने के लिए सबसे पहले “जेनेटिक इंजीनियरिंग” की प्रक्रिया को समझना ज़रूरी है। इसमें किसी पौधे के DNA में दूसरे जीवों के जीन्स (उदाहरण के लिए, बैक्टीरिया या वायरस) को डालकर उसकी विशेषताओं में बदलाव किया जाता है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य फसलों को उन चुनौतियों के लिए तैयार करना है, जिनका सामना पारंपरिक कृषि विधियों से नहीं किया जा सकता।
उदाहरण:
- Bt कपास: इसमें बैसिलस थुरिंजिएन्सिस (Bt) नामक बैक्टीरिया का जीन डाला जाता है, जो कीटों को मारने वाला प्रोटीन बनाता है।
- गोल्डन राइस: विटामिन-ए की कमी दूर करने के लिए इसमें कैरोटीनोइड जीन डाला गया है।
GM फसलों के फायदे
1. उत्पादन में वृद्धि
GM फसलें कीटों और बीमारियों के प्रति अधिक प्रतिरोधी होती हैं, जिससे फसल नुकसान कम होता है और उत्पादन बढ़ता है। विश्व बैंक के अनुसार, Bt कपास ने भारत में कपास उत्पादन 50% तक बढ़ाया है।
2. रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता कम
जैसे Bt कपास स्वयं कीटों से लड़ने की क्षमता रखती है, इसलिए किसानों को कीटनाशकों पर खर्च कम करना पड़ता है।
3. पोषण संवर्धन
GM तकनीक से पौष्टिक फसलें विकसित की जा सकती हैं। गोल्डन राइस इसका प्रमुख उदाहरण है, जो विटामिन-ए की कमी दूर करने में मददगार है।
4. जलवायु परिवर्तन से मुकाबला
सूखा-सहनशील GM फसलें उन क्षेत्रों के लिए वरदान हैं, जहाँ पानी की कमी है।
GM फसलों को लेकर विवाद क्यों?
1. स्वास्थ्य जोखिम
कई अध्ययनों में GM फसलों को एलर्जी, लीवर डैमेज और हार्मोनल असंतुलन का कारण बताया गया है। हालाँकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का कहना है कि “अब तक GM खाद्य पदार्थों से मानव स्वास्थ्य को कोई गंभीर खतरा नहीं देखा गया है।”
2. पर्यावरणीय चिंताएँ
- GM फसलों के परागण से पारंपरिक फसलों में जीन प्रवाह (जीन कंटामिनेशन) का खतरा।
- कीटनाशक प्रतिरोधी फसलों के कारण सुपरवीड्स (अतिसक्षम खरपतवार) का उभरना।
3. आर्थिक शोषण
GM बीजों पर कंपनियों का पेटेंट होता है, जिससे किसानों को हर साल महँगे बीज खरीदने पड़ते हैं। भारत में Bt कपास के कारण किसानों के आत्महत्या के मामले इसकी गंभीरता दर्शाते हैं।
4. नैतिक सवाल
“क्या मनुष्य को प्रकृति के जीन्स में छेड़छाड़ करने का अधिकार है?” यह सवाल GM तकनीक के विरोधियों का मुख्य तर्क है।
भारत और GM फसलें: स्थिति और संभावनाएँ
भारत में 2002 से Bt कपास की खेती की अनुमति है, जो देश की 95% कपास उत्पादन का आधार है। हालाँकि, अन्य GM फसलों जैसे बैंगन (Bt बैंगन) और सरसों (DMH-11) को लेकर सरकार और समाज में मतभेद हैं।
चुनौतियाँ:
- जागरूकता की कमी: छोटे किसानों को GM तकनीक के फायदे-नुकसान की पूरी जानकारी नहीं।
- नियमन का अभाव: जीन इंजीनियरिंग अप्रैजल कमेटी (GEAC) के नियमों को लागू करने में ढील।
- राजनीतिक विवाद: कुछ राज्य सरकारें GM फसलों का विरोध करती हैं, जैसे महाराष्ट्र और केरल।
संभावनाएँ:
- स्टैक्ड जीन टेक्नोलॉजी: एक ही फसल में कई गुण (जैसे कीट प्रतिरोध + सूखा सहनशीलता) डालना।
- सस्टेनेबल एग्रीकल्चर: कम पानी और रसायनों वाली फसलों से पर्यावरण संरक्षण।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)
1. क्या GM फसलें मानव स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित हैं?
वैज्ञानिक समुदाय इस पर विभाजित है। WHO और FAO के मुताबिक, अब तक कोई ठोस सबूत नहीं मिले हैं, लेकिन लंबे समय के प्रभावों पर शोध जारी है।
2. GM फसलें पारंपरिक फसलों से कैसे अलग हैं?
GM फसलों में विशिष्ट गुणों के लिए DNA में बदलाव किया जाता है, जबकि पारंपरिक फसलें प्राकृतिक चयन या संकरण से विकसित होती हैं।
3. क्या भारत में GM खाद्य पदार्थों को लेबल करना अनिवार्य है?
हाँ, 2021 के FSSAI नियमों के अनुसार, GM सामग्री वाले उत्पादों पर “जीन-संशोधित” लेबल लगाना ज़रूरी है।
4. क्या GM फसलें गरीब किसानों के लिए फायदेमंद हैं?
यह बीजों की कीमत और उत्पादन लागत पर निर्भर करता है। Bt कपास ने कुछ किसानों को फायदा पहुँचाया, लेकिन कर्ज़ के चलते कई संकट में भी आए।
निष्कर्ष
जीन-संशोधित फसलें एक दोधारी तलवार हैं। एक ओर, ये बढ़ती आबादी और जलवायु संकट के दौर में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने का वादा करती हैं। दूसरी ओर, इनके दीर्घकालिक प्रभावों को लेकर वैज्ञानिक, सामाजिक और नैतिक सवाल अनुत्तरित हैं। भारत जैसे देश के लिए यह ज़रूरी है कि GM तकनीक को अपनाते समय सतर्कता बरती जाए। किसानों को शिक्षित करना, सख्त नियमन लागू करना और जनता को पारदर्शी जानकारी देना ही इस विवाद का संतुलित समाधान हो सकता है। अंततः, विज्ञान और प्रकृति के बीच सामंजस्य बनाकर ही हम एक टिकाऊ भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं।
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